नींद के दौरान, खासकर REM (रैपिड आई मूवमेंट) चरण में, हमारा मस्तिष्क अत्यधिक सक्रिय होता है। इस सक्रियता के दौरान मस्तिष्क यादों, विचारों और अनुभवों को प्रोसेस करता है, जिससे सपने आते हैं।
दिनभर की घटनाओं और भावनाओं को मस्तिष्क सोते समय प्रोसेस करता है। यह प्रक्रिया हमारी यादों को संगठित करने और उन्हें दीर्घकालिक स्मृति में संग्रहित करने में मदद करती है, जो सपनों का कारण बन सकती है।
सपने अक्सर हमारे अवचेतन मन में दबे हुए विचारों, इच्छाओं और भावनाओं का परिणाम होते हैं। सोते समय, जब हमारा सचेत मन आराम करता है, तब अवचेतन मन की गतिविधियां सपनों के रूप में प्रकट हो सकती हैं।
सपने हमारे मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा हो सकते हैं। वे हमारे तनाव, चिंताओं और भावनात्मक संघर्षों को प्रकट कर सकते हैं और उन्हें सुलझाने में मदद कर सकते हैं।
सोते समय मस्तिष्क की रचनात्मक प्रक्रिया भी सक्रिय रहती है। यह रचनात्मकता सपनों में प्रकट होती है, जहां हम कल्पनाशील और असामान्य परिस्थितियों का अनुभव करते हैं।
नींद के दौरान शरीर की स्थिति, जैसे पेट के बल सोना या तेज सांस लेना, भी सपनों के विषय को प्रभावित कर सकता है। यह स्थिति मस्तिष्क को अलग-अलग संवेदनाओं का अनुभव कराती है, जो सपनों में दिखाई देती है।
सपने अक्सर दिन के दौरान की गई गतिविधियों और अनुभवों का प्रतिबिंब होते हैं। जो बातें या घटनाएं हमारे दिमाग में अधिक प्रभाव डालती हैं, वे सपनों में दिखाई देती हैं।
मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड के अनुसार, सपने अधूरी इच्छाओं की पूर्ति का एक माध्यम होते हैं। जो इच्छाएं जागते समय पूरी नहीं हो पातीं, वे सपनों के माध्यम से संतुष्ट होती हैं।