ओलंपिक और इसके मेडल से जुड़ी रोचक बातें

ओलंपिक खेलों की शुरुआत प्राचीन ग्रीस में 776 ईसा पूर्व हुई थी। इन खेलों में विजेताओं को पदक नहीं, बल्कि जैतून की पत्तियों से बनी माला पहनाई जाती थी। 

आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत 1896 में पियरे डे कुबर्टिन द्वारा की गई। पहले आधुनिक ओलंपिक एथेंस, ग्रीस में आयोजित हुए थे, और इसमें केवल 13 देशों के 280 एथलीटों ने भाग लिया था। 

1904 से ओलंपिक विजेताओं को गोल्ड, सिल्वर, और ब्रॉन्ज़ मेडल दिए जाने लगे। इससे पहले, पहले स्थान पर आए खिलाड़ी को सिल्वर और दूसरे स्थान पर आए खिलाड़ी को कांस्य पदक दिया जाता था। 

आज के ओलंपिक गोल्ड मेडल पूरी तरह से सोने के नहीं होते। 1912 के बाद से, गोल्ड मेडल में केवल 6 ग्राम सोना होता है, बाकी का हिस्सा चांदी का बना होता है। 

ओलंपिक रिंग्स का डिज़ाइन 1913 में पियरे डे कुबर्टिन ने किया था। ये पांच रिंग्स पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करती हैं: अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप, और ओशिनिया। 

ओलंपिक के हर संस्करण के लिए मेडल का डिज़ाइन अलग होता है। हर मेजबान देश अपने सांस्कृतिक प्रतीकों और ओलंपिक भावना के आधार पर मेडल का डिज़ाइन तैयार करता है। 

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, ओलंपिक में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी ने 1964 तक एक संयुक्त टीम के रूप में भाग लिया। इसी प्रकार, यूएसएसआर (सोवियत संघ) ने 1952 से 1988 तक ओलंपिक खेलों में भाग लिया और कई पदक जीते। 

सर्दियों और गर्मियों के ओलंपिक खेल अलग-अलग होते हैं और हर चार साल में आयोजित किए जाते हैं। पहले ये एक ही साल में आयोजित होते थे, लेकिन 1994 से इन्हें अलग-अलग वर्षों में आयोजित किया जाने लगा।